दुःख
- कहानी ( यशपाल )
पात्र : दिलीप ,हेमा ,लड़का, लड़के की माँ
कहानी का नायक दिलीप है । हेमा उसकी पत्नी है । एक छोटी सी बात को लेकर दोनों के बीच झगड़ा हो जाता है । दिलीप ने अपनी पत्नी को दांपत्य जीवन में पूर्ण स्वतंत्रता दी थी । दिलीप भी वही स्वतंत्रता चाहता है अपनी पत्नी से । हेमा दिलीप के उसकी सहेली के साथ सिनेमा देख आने के कारण दिनभर रूठी रहकर दूसरे ही दिन माँ के घर चली गई । दिलीप का मन एकदम दुःखी हो जाता है । इस दुःखी मन को हल्का करने के लिए वह बाहर टहलने केलिए चला जाता है ।
शाम का वक्त था । बारिश भी थ। वह पार्क में एक बेंच में बैठ जाता है । वह सोचता है कि, यदि ठंड लग जाने से वह बीमार हो जाए, उसकी हालत खराब हो जाए, तो वह चुपचाप शहीद की तरह अपने दुःख को अकेला ही सहेगा । एक दिन मृत्यु दबे पाँव आएगी और उसके रोग के कारण, उसके सिर पर सांत्वना का हाथ फेर उसे शांत कर चली जाएगी । उस दिन उसे होकर हेमा अपने नुकसान का अंदाज़ा कर अपने व्यवहार के लिए पछताएगी । ऐसे विचार दिलीप के मन में आते है ।
कुछ देर बाद जब वह घर की ओर चलता है तब उसका ध्यान एक छोटा सा बालक पर पड़ता है । वह इस ठंड में एक पुरानी थाली में पकवान बेच रहा है । उस रास्ते में ग्राहकों के आने का संभावना तक नहीं था । लड़के के मुंह पर खोमचा बेचनेवालों की चतुरता न थी, बल्कि उसकी जगह थी एक कायरता ।
दिलीप बच्चे के पास जाता है । बच्चे से बात करने के बाद दिलीप ने पूरा पकवान आठ पैसे में खरीदा । उसने जेब से एक रुपया निकालकर लड़के की थाली में डाल दिया । लेकिन बाक़ी देने के लिए बच्चे के पास पैसा नहीं था । दिलीप उसके घर के हालत के बारे में सोचता है और बाद में उसके साथ घर चला जाता है । बच्चे ने कहा भी था कि घर पर भी पैसे नहीं होगा ।
रास्ते में लड़के से बात करके दिलीप को पता चला कि उसके पिता का मृत्यु हो गई है । माँ किसी घर में काम करती थी लेकिन वहाँ से उसे निकाल दिया गया । क्योंकि किसी और औरत ने कम रुपए में काम करने का प्रस्ताव रखा । तब मालिक की पत्नी ने उसकी माँ को निकाल दिया ।
वे एक कोठरी के पास पहुंचा । गरीबी का ऐसा नज़ारा दिलीप पहली बार देख रहा है । लड़के की माँ के पास भी पैसा नहीं था । दिलीप कहते हैं, " रहने दीजिए, यह पैसे मेरी तरफ से बच्चे को मिठाई खाने के लिए रहने दीजिए ।" उसे पता चलता है कि बच्चे को रोटी दिन में एक बार मिलता है । आटा में नमक डालकर रोटी बनाना ही उनके लिए बहुत है । मँ खुद भूखी रहकर बच्चे को रोटी खिलाती है । दिलीप के लिए और देख सकना संभव न था । वह वहां से चला जाता है ।
दिलीप घर पहुंचता है । नौकर उसे खाने के लिए बुलाता है । लेकिन वह खाना भी नहीं खाना चाहता । मिट्टी के तेल की ढिबरी के प्रकाश में देखा वह दृश्य उसकी आँखों के सामने से हटना न चाहता था । छोटे भाई उसे हेमा का पत्र देता है । दिलीप ने पत्र खोला । उसकी पहली लाइन में लिखा था,
" मैं इस जीवन में दुख ही देखने केलिए पैदा हुई हूँ ... " दिलीप ने आगे न पढ़, पत्र फाड़कर फेंक दिया ।
" काश ! तुम जानती, दुःख किसे कहते हैं । ... तुम्हारा यह रसीला दुःख तुम्हें न मिले तो जिंदगी दूभर हो जाए । "
जब गरीबी को उसने देखा तो उसे पता चला कि वास्तविक दुख क्या है ? बाक़ी दुःख स्वनिर्मित है, जो कोई मायने नहीं रखता ।
Questions
यशपाल की गणना निम्नलिखित किस कोटि में है ?
A. छायावादी
B. प्रगतिवादी
C. हालावादी
D. रहस्यवादी
@iamchandruss
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