प्रयोगवाद


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प्रयोगवाद

आरंभ -सन 1943

अज्ञेय के संपादकत्व में प्रकाशित तार सप्तक से
सात कवियों की कविताएँ

शब्द का प्रथम प्रयोग- नंद दुलारे वाजपेयी  'प्रयोगवादी रचनाएँ 'शीर्षक निबंध में
उन्होंने प्रयोगवाद को 'बैठे ठाले का धंधा ' कहा

तार सप्तक के संपादक -अज्ञेय
तार सप्तक    (1943)
दूसरा सप्तक  (1951)
तीसरा सप्तक (1959)
चौथा सप्तक   (1979)
 
अज्ञेय ने प्रयोगवादी कवियों को 'राहों के अन्वेषी'  कहा है ।
"प्रयोग का कोई वाद नहीं है हम वादी नहीं रहे , नहीं है । ना प्रयोग अपने आप में इष्ट या साध्य है । ठीक इसी तरह कविता का भी कोई वाद नहीं है ; कविता भी अपने आप में इष्ट या साध्य नहीं है ।अतः हमें प्रयोगवादी कहना उतना ही सार्थक या निरर्थक है जितना हमें कवितावादी कहना । "

प्रवर्तक- अज्ञेय
डॉक्टर रामविलास शर्मा - "प्रयोगवादी कविता में युग से उत्पन्न अनास्था, शंका , घुटन, कुंठा , भग्नाशा में से एक नये पथ के अन्वेषण की व्याकुल भावना दिखाई पड़ती है । ये कवि एक नए मार्ग का अनुसंधान करने के लिए व्याकुल हैं ।"

 प्रमुख प्रवृतियां -
कला पक्ष का अधिक महत्व
साहित्यिक आंदोलन
यथार्थवाद का आग्रह
निराशावाद
बौद्धिकता का प्राधान्य
उपमानों की नवीनता
साधारण विषयों का निरूपण
भाषा का प्रयोग

"प्रयोगवाद शैलीगत विद्रोह है । " - नगेंद्र
"प्रयोग कलात्मक अनुभव का क्षण है । "- रघुवीर सहाय

प्रगतिवाद- सामाजिक विषयों को लेखन में स्थान देता है
प्रयोगवाद- निजी व्यक्तित्व ,निजी साथ और निजता की आवाज उठाई।

मूलाधार - वैयक्तिकता या व्यक्तिवाद

'नदी के दीप' -अज्ञेय

" किंतु हम है द्वीप
हम धारा नहीं हैं 
स्थिर समर्पण है हमारा
हम सदा से द्वीप से द्वीप है स्रोतस्विनी के
किंतु हम बहते नहीं हैं 
क्योंकि बहना रेत होना है ।
हम बहेंगे तो रहेंगे ही नहीं "

व्यक्ति की निराशा , कुंडा , दुख , पीड़ा


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●  इसमें अज्ञेय का संबंध किससे है ?

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●  इनमें प्रयोगवाद से संबंधित काव्य संग्रह ?

मधुशाला
चिदंबरा
तारसप्तक
भारत भारती




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