पृथ्वीराज रासो
रामचंद्र शुक्ल- चंद हिंदी के प्रथम महा कवि माने जाते हैं और इनका पृथ्वीराज रासो हिंदी का प्रथम महाकाव्य है ।
चंदबरदाई दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान का सामंत और राजकवि
महाभारत की तरह एक विशाल महाकाव्य
चंद प्रतिभाशाली, दूरदर्शी, वीर तथा स्वामिभक्त कवि पृथ्वीराज उसे अपने सखा के समान साथ रखते थे
डॉ .नामवर सिंह ने चंदबरदाई को छंदों का राजा कहा
जल्ल (चंद के चार पुत्रों में एक) ने चंद के अधूरे महाकाव्य को पूर्ण किया
यह काव्य पिंगल शैली में लिखा गया है
राजस्थानी बोलियों का मिश्रण
अलंकारों का प्रयोग
69 खंड (समय)
16306 छंद
68 प्रकार के छंदों का प्रयोग
मुख्य छंद- कवित्त, दूहा, तोंगर, त्रोटक, गाहा
उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग
दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज के जीवन की घटनाओं को लेकर लिखा गया
वीर रस का सर्वश्रेष्ठ काव्य
रासक परंपरा का काव्य
प्रेमिका का नाम -संयोगिता
चार संस्करण -सबसे बड़ा वह है जिसका प्रकाशन नागरी प्रचारिणी सभा काशी से हुआ है ।
जिसकी हस्तलिखित प्रति उदयपुर के संग्रहालय में
रासो को एक जाली ग्रंथ माना गया है ।
सर्वाधिक विवादास्पद
प्रामाणिक -डॉक्टर श्यामसुंदर दास, मोहनलाल विष्णु लाल पंड्या, मित्रबंधु
(जो संस्करण सभा से प्रकाशित हुआ है वही प्रामाणिक है )
अप्रामाणिक -रामचंद्र शुक्ल, गौरीशंकर हीराचंद ओझा ,डॉक्टर बूलर
(रासो में लिखित घटनाएँ और नाम इतिहास से मेल नहीं खाते )
@iamchandruss
रामचंद्र शुक्ल- चंद हिंदी के प्रथम महा कवि माने जाते हैं और इनका पृथ्वीराज रासो हिंदी का प्रथम महाकाव्य है ।
चंदबरदाई दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान का सामंत और राजकवि
महाभारत की तरह एक विशाल महाकाव्य
चंद प्रतिभाशाली, दूरदर्शी, वीर तथा स्वामिभक्त कवि पृथ्वीराज उसे अपने सखा के समान साथ रखते थे
डॉ .नामवर सिंह ने चंदबरदाई को छंदों का राजा कहा
जल्ल (चंद के चार पुत्रों में एक) ने चंद के अधूरे महाकाव्य को पूर्ण किया
यह काव्य पिंगल शैली में लिखा गया है
राजस्थानी बोलियों का मिश्रण
अलंकारों का प्रयोग
69 खंड (समय)
16306 छंद
68 प्रकार के छंदों का प्रयोग
मुख्य छंद- कवित्त, दूहा, तोंगर, त्रोटक, गाहा
उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग
दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज के जीवन की घटनाओं को लेकर लिखा गया
वीर रस का सर्वश्रेष्ठ काव्य
रासक परंपरा का काव्य
प्रेमिका का नाम -संयोगिता
चार संस्करण -सबसे बड़ा वह है जिसका प्रकाशन नागरी प्रचारिणी सभा काशी से हुआ है ।
जिसकी हस्तलिखित प्रति उदयपुर के संग्रहालय में
रासो को एक जाली ग्रंथ माना गया है ।
सर्वाधिक विवादास्पद
प्रामाणिक -डॉक्टर श्यामसुंदर दास, मोहनलाल विष्णु लाल पंड्या, मित्रबंधु
(जो संस्करण सभा से प्रकाशित हुआ है वही प्रामाणिक है )
अप्रामाणिक -रामचंद्र शुक्ल, गौरीशंकर हीराचंद ओझा ,डॉक्टर बूलर
(रासो में लिखित घटनाएँ और नाम इतिहास से मेल नहीं खाते )
@iamchandruss
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