सूरदास



सूरदास  (1478 - 1583)

सगुण भक्ति धारा( कृष्ण भक्ति शाखा)
वल्लभ संप्रदाय
गुरु-वल्लभाचार्य

हजारी प्रसाद द्विवेदी -"सूरदास ही ब्रजभाषा के प्रथम कवि हैं और लीलागान का महान समुद्र सूरसागर ही उसका प्रथम काव्य है ।"

जन्मस्थान
रुनकथा (गऊघाट)- श्याम सुंदर दास, शुक्लजी, हजारी प्रसाद द्विवेदी
सीही- वार्ता साहित्य, नगेन्द्र ,गणपतिचंद्र गुप्त

25 ग्रन्थ, जिसमें से तीन ही उपलब्ध
सूरसागर, सूरसारावली ,साहित्य लहरी

सूरसागर का आधार भगवत महापुराण का दशम स्कन्ध है ।
इसमें 4936 पद तथा 12 स्कन्ध है ।
सूरसागर में इन्होंने ने तीन भ्रमर गीतों  की योजना की है ।
प्रथम भ्रमरगीत( पद संख्या 4078-4710)
दूसरा (4711-4712)
तीसरा 4713

हिंदी साहित्य में भ्रमरगीत काव्य परंपरा का प्रवर्तन सूरदास ने किया ।
भ्रमर गीत में कुल 700 पद हैं ।
मैनेजर पांडेय ने भ्रमर का तीन रूप बताया है- कृष्ण का प्रतीक, उद्धव का प्रतीक, स्वतंत्र रूप में

भ्रमरगीत को उपालम्भ काव्य भी कहते हैं।
शुक्ल ने इसे ध्वनिकाव्य कहा है।

सूरसारावली - 1107 छंद - इसकी रचना संसार को होली का रूपक मानकर की गई है ।
साहित्य लहरी - अलंकार और नायिका भेदों का उदाहरण प्रस्तुत करनेवाले 118 दृष्टिकोण पद

शुक्ल जी - "वात्सल्य और श्रृंगार के क्षेत्र का जितना अधिक उद्घाटन सूर ने बंद आंखों से किया, उतना किसी और कवि ने नहीं । "
सूरदास को वात्सल्य रस का सम्राट माना जाता है ।



@iamchandruss


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