बिहारी
रामचंद्र शुक्ल ने बिहारीलाल को रसवादी माना है ।
नगेन्द्र ने ध्वनिवादी स्वीकार किया ।
श्री राधाचरण गोस्वामी ने बिहारी को पीयूषवर्षी मेघ की उपमा दी ।
रीतिसिद्ध कवि
जन्म -1595
मृत्यु -1663
जन्मस्थान- गोविंदपुर
गुरु -नरहरिदास
संप्रदाय- निम्बार्क
आश्रयदाता- महाराज जय सिंह
एकमात्र रचना बिहारी सतसई दोहा छंद में रचित है
भाषा साहित्यिक ब्रज
"सत सैया के दोहरे ,ज्यों नावक के तीर ।
देखन में छोटे लगैं, बेधैं सकल शरीर ।।"
ग्रियर्सन-"यूरोप में बिहारी सतसई के समकक्ष कोई रचना नहीं है ।"
बिहारी सतसई पर हिंदी में 50 से अधिक टीका प्राप्त है ।
बिहारी के पुत्र कृष्णलाल कवि ने बिहारी सतसई की टीका सर्वप्रथम सवैया छंद में ब्रजभाषा में लिखी।
लल्लूलाल -लालचन्द्रिका
जगन्नाथदास रत्नाकर- बिहारी रत्नाकर
बिहारी के दोहों की संख्या 719 है ।
जगन्नाथदास रत्नाकर ने इनके दोहों की संख्या 713 माना है।
रामचंद्र शुक्ल- श्रंगार रस के ग्रंथों में जितनी ख्याति और जितना मान बिहारी सतसई का हुआ उतना किसी का नहीं । इसका एक एक दोहा हिंदी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है ।
संस्कृत के आचार्य बलदेव उपाध्याय - बिहारी दोहा के बादशाह है ।
@iamchandruss
रामचंद्र शुक्ल ने बिहारीलाल को रसवादी माना है ।
नगेन्द्र ने ध्वनिवादी स्वीकार किया ।
श्री राधाचरण गोस्वामी ने बिहारी को पीयूषवर्षी मेघ की उपमा दी ।
रीतिसिद्ध कवि
जन्म -1595
मृत्यु -1663
जन्मस्थान- गोविंदपुर
गुरु -नरहरिदास
संप्रदाय- निम्बार्क
आश्रयदाता- महाराज जय सिंह
एकमात्र रचना बिहारी सतसई दोहा छंद में रचित है
भाषा साहित्यिक ब्रज
"सत सैया के दोहरे ,ज्यों नावक के तीर ।
देखन में छोटे लगैं, बेधैं सकल शरीर ।।"
ग्रियर्सन-"यूरोप में बिहारी सतसई के समकक्ष कोई रचना नहीं है ।"
बिहारी सतसई पर हिंदी में 50 से अधिक टीका प्राप्त है ।
बिहारी के पुत्र कृष्णलाल कवि ने बिहारी सतसई की टीका सर्वप्रथम सवैया छंद में ब्रजभाषा में लिखी।
लल्लूलाल -लालचन्द्रिका
जगन्नाथदास रत्नाकर- बिहारी रत्नाकर
बिहारी के दोहों की संख्या 719 है ।
जगन्नाथदास रत्नाकर ने इनके दोहों की संख्या 713 माना है।
रामचंद्र शुक्ल- श्रंगार रस के ग्रंथों में जितनी ख्याति और जितना मान बिहारी सतसई का हुआ उतना किसी का नहीं । इसका एक एक दोहा हिंदी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है ।
संस्कृत के आचार्य बलदेव उपाध्याय - बिहारी दोहा के बादशाह है ।
@iamchandruss
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