वापसी - कहानी ( उषा प्रियंवदा )
सारांश
स्टेशन मास्टर की नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद गजाधर बाबू बड़े उत्साह से अपने परिवार के साथ रहने की इच्छा लेकर घर लौटते हैं ।
रेलवे क्वार्टर में रह कर नौकरी करते हुए गजाधर बाबू को पैंतीस सालों तक परिवार से दूर रहना पड़ा था ताकि उनका परिवार शहर में सुख- सुविधाओं के बीच रह सके ।
नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने सोचा कि अब जिंदगी के बचे दिन अपने परिजनों के साथ बिताएंगे । घर लौटकर उन्होंने देखा कि परिवार के लोग अपने - अपने ढंग से जी रहे हैं ।
बेटा घर का मालिक बना हुआ है। बेटी और बहू घर का कोई काम नहीं करतीं । यदि उन्हें खाना बनाने को कहा जाए तो वे जानबूझ कर अधिक राशन खर्च कर देती हैं । इसलिए उनकी पत्नी ने रसोई की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है । घर के अन्य कामों के लिए नौकर रखा गया है, जिसकी कोई आवश्यकता ही नहीं है ।
परिवार के लिए सालों स्टेशन के क्वाटर में अकेले रहकर उन्होंने अपना जीवन गुजार दिया । आज परिवार के किसी सदस्य के मन में उनके प्रति कोई लगाव नहीं है। बच्चों के लिए वे केवल पैसा कमाने के साधन मात्र हैं।
गजाधर बाबू की उपस्थिति व किसी कार्य में उनका हस्तक्षेप बेटे - बहू को स्वीकार नहीं था । उनके होने से उन्हें अपने मन से जीने की स्वतंत्रता नहीं मिल पाती । उनकी अपनी बेटी भी एक छोटी सी डांट पर मुँह फुला देती है । उनकी पत्नी उन्हें समझने की बजाय उलटे उन्हीं को बच्चों के फैसलों के बीच में न पड़ने की सलाह देती है ।
परिवार में गजाधर बाबू की वापसी आधुनिक परिवार में टूटते पारिवारिक संबंधों के साथ परिवार के बूढ़े व्यक्ति की लाचारी भी प्रस्तुत करती है । घर के सभी सदस्य गजाधर बाबू के फैसले का निरादर कर देते हैं । कुछ समय बाद घर में उनकी उपस्थिति बच्चो को अखरने लगती है ।
घरेलू मामले में उनके किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को उनकी पत्नी तथा बच्चे स्वीकार नहीं करते । वे उनके फैसले का विरोध करने लगते हैं । उनके कारण घर में दोस्तों के बीच चलने वाली चाय पार्टी में अवरोध न हो इसलिए बैठक से उनकी चारपाई हटाकर माँ के कमरे में लगा दी जाती है ।
उनके लिए सबसे दु:खद बात यह होती है कि जिस पत्नी का स्नेह और सौहार्द नौकरी के समय निरंतर उनके स्मरण में आता था, अब वही पत्नी घर की रसोई सम्हालने में ही संतोष का अनुभव करती है तथा पति से अधिक बच्चों के बीच रहने में अपने जीवन की सार्थकता समझती है।
कुलमिलाकर गजाधर बाबू अपने परिजनों के बीच पराया हो जाना बर्दाश नहीं कर पाते । अपनी पत्नी और बच्चों से निराश होकर चीनी मील में नयी नौकरी खोजकर घर से चले जाने का फैसला कर लेते हैं ।
Questions
उषा प्रियंवदा की कहानी ' वापसी ' का प्रतिपाद्य विषय :
1. राजनीतिक समस्याएँ
2. पारिवारिक विसंगतियाँ
3. ब्रिटिश राज
4. दहेज प्रथा
@iamchandruss
सारांश
स्टेशन मास्टर की नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद गजाधर बाबू बड़े उत्साह से अपने परिवार के साथ रहने की इच्छा लेकर घर लौटते हैं ।
रेलवे क्वार्टर में रह कर नौकरी करते हुए गजाधर बाबू को पैंतीस सालों तक परिवार से दूर रहना पड़ा था ताकि उनका परिवार शहर में सुख- सुविधाओं के बीच रह सके ।
नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने सोचा कि अब जिंदगी के बचे दिन अपने परिजनों के साथ बिताएंगे । घर लौटकर उन्होंने देखा कि परिवार के लोग अपने - अपने ढंग से जी रहे हैं ।
बेटा घर का मालिक बना हुआ है। बेटी और बहू घर का कोई काम नहीं करतीं । यदि उन्हें खाना बनाने को कहा जाए तो वे जानबूझ कर अधिक राशन खर्च कर देती हैं । इसलिए उनकी पत्नी ने रसोई की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है । घर के अन्य कामों के लिए नौकर रखा गया है, जिसकी कोई आवश्यकता ही नहीं है ।
परिवार के लिए सालों स्टेशन के क्वाटर में अकेले रहकर उन्होंने अपना जीवन गुजार दिया । आज परिवार के किसी सदस्य के मन में उनके प्रति कोई लगाव नहीं है। बच्चों के लिए वे केवल पैसा कमाने के साधन मात्र हैं।
गजाधर बाबू की उपस्थिति व किसी कार्य में उनका हस्तक्षेप बेटे - बहू को स्वीकार नहीं था । उनके होने से उन्हें अपने मन से जीने की स्वतंत्रता नहीं मिल पाती । उनकी अपनी बेटी भी एक छोटी सी डांट पर मुँह फुला देती है । उनकी पत्नी उन्हें समझने की बजाय उलटे उन्हीं को बच्चों के फैसलों के बीच में न पड़ने की सलाह देती है ।
परिवार में गजाधर बाबू की वापसी आधुनिक परिवार में टूटते पारिवारिक संबंधों के साथ परिवार के बूढ़े व्यक्ति की लाचारी भी प्रस्तुत करती है । घर के सभी सदस्य गजाधर बाबू के फैसले का निरादर कर देते हैं । कुछ समय बाद घर में उनकी उपस्थिति बच्चो को अखरने लगती है ।
घरेलू मामले में उनके किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को उनकी पत्नी तथा बच्चे स्वीकार नहीं करते । वे उनके फैसले का विरोध करने लगते हैं । उनके कारण घर में दोस्तों के बीच चलने वाली चाय पार्टी में अवरोध न हो इसलिए बैठक से उनकी चारपाई हटाकर माँ के कमरे में लगा दी जाती है ।
उनके लिए सबसे दु:खद बात यह होती है कि जिस पत्नी का स्नेह और सौहार्द नौकरी के समय निरंतर उनके स्मरण में आता था, अब वही पत्नी घर की रसोई सम्हालने में ही संतोष का अनुभव करती है तथा पति से अधिक बच्चों के बीच रहने में अपने जीवन की सार्थकता समझती है।
कुलमिलाकर गजाधर बाबू अपने परिजनों के बीच पराया हो जाना बर्दाश नहीं कर पाते । अपनी पत्नी और बच्चों से निराश होकर चीनी मील में नयी नौकरी खोजकर घर से चले जाने का फैसला कर लेते हैं ।
Questions
उषा प्रियंवदा की कहानी ' वापसी ' का प्रतिपाद्य विषय :
1. राजनीतिक समस्याएँ
2. पारिवारिक विसंगतियाँ
3. ब्रिटिश राज
4. दहेज प्रथा
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